वर्षा ऋतु के अंतिम चरण में बढ़ रहे स्वास्थ्य जोखिम, आयुर्वेदिक उपायों से पाएं राहत

वर्षा ऋतु के अंतिम चरण में बढ़ रहे स्वास्थ्य जोखिम, आयुर्वेदिक उपायों से पाएं राहत

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नई दिल्ली, 11 अगस्त (आईएएनएस)। मानसून अब अपने अंतिम चरण में पहुंच चुका है। आयुर्वेद में इसे 'वर्षा ऋतु' के नाम से जाना जाता है और इस समय सबसे ज्यादा शरीर में वात दोष का प्रकोप देखा जाता है। विशेषज्ञों के अनुसार, इस मौसम में वात दोष के असंतुलन के कारण स्नायु संबंधी विकार, जैसे जोड़ों में दर्द, पीठ दर्द और थकावट की समस्या बढ़ जाती है। साथ ही, पित्त का संचय भी शुरू हो जाता है, जिससे यकृत यानी लिवर, पित्ताशय और मूत्र मार्ग से जुड़ी बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है।

आयुर्वेदाचार्यों का मानना है कि इस ऋतु में अगर आहार और दिनचर्या में सावधानी न बरती जाए तो मौसमी बीमारियां जल्दी जकड़ लेती हैं। रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत बनाए रखने के लिए कुछ प्रभावी उपाय किए जा सकते हैं।

आयुर्वेद में सबसे पहले, अदरक पाउडर के साथ गुनगुना पानी पीने की सलाह दी जाती है, जिससे पाचन तंत्र सक्रिय रहता है और वात का संतुलन बना रहता है।

दही और हरी पत्तेदार सब्जियों से इस मौसम में परहेज करना चाहिए क्योंकि इस ऋतु में पत्तेदार सब्जियों को साफ करना काफी मुश्किल होता है। मिट्टी, कीड़े और लार्वा जैसे तत्व पत्तों में इस कदर छुप जाते हैं कि साधारण पानी से धोने पर भी पूरी तरह साफ नहीं हो पाते हैं। वहीं नमी के कारण यह जल्दी सड़ भी जाते हैं, जिससे उनके खराब होने का खतरा बढ़ जाता है।

इसके अलावा, 'अभ्यंग,' यानी तेल से शरीर की मालिश, वात दोष को शांत करने का एक अति प्रभावी तरीका है। यह न केवल जोड़ों के दर्द में राहत देता है, बल्कि त्वचा और स्नायुओं को भी पोषण प्रदान करता है।

साथ ही, हल्का विरेचन केवल आयुर्वेदिक वैद्य की सलाह से लिया जाना चाहिए, जिससे पित्त नियंत्रित रहे और लिवर और किडनी पर कोई अतिरिक्त भार न पड़े।

आयुर्वेद में पंचकर्म को इस मौसम में विशेष रूप से लाभकारी माना गया है। यह न केवल रोगियों के लिए, बल्कि स्वस्थ लोगों के लिए भी प्रमुख उपाय है।

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