नई दिल्ली, 9 अगस्त (हि.ला.)। आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता और दिल्ली के पूर्व शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया ने भाजपा सरकार के स्कूल फीस बिल को लेकर गहरी चिंता जताई है। उनका कहना है कि दिल्ली में भाजपा का नया कानून पैरेंट्स की जेब पर खुला डाका है। फीस बढ़ाने का पूरा अधिकार स्कूल के मैनेजर और उसकी जेब में बैठी कमेटी को दे दिया गया है।
शनिवार को मनीष सिसोदिया ने एक वीडियाे संदेश जारी कर कहा कि दिल्ली की विधानसभा ने शुक्रवार एक बहुत खतरनाक कानून पास किया है। यह कानून कहने के लिए प्राइवेट स्कूलों की फीस पर लगाम लगाने के लिए बनाया गया है। लेकिन सच यह है कि इस कानून के लागू होने के बाद दिल्ली के सारे प्राइवेट स्कूल अभिभावकों का खून चूस सकते हैं। अब उनके ऊपर ना सरकार का शिकंजा रहेगा, ना कोर्ट का शिकंजा रहेगा। प्राइवेट स्कूलों को खुली छूट दे दी गई है। शायद इसीलिए छह महीने पहले, जब भाजपा की सरकार दिल्ली में बनी थी, तब प्राइवेट स्कूल वालों ने लड्डू बांटे थे। क्योंकि पिछले 10 साल से अरविंद केजरीवाल ने उनको फीस नहीं बढ़ाने दी थी। जैसे ही भाजपा की सरकार आई, प्राइवेट स्कूल वालों ने लड्डू बांटे और कहा कि अब हमारी सरकार आ गई है। अब हम खुलकर अभिभावकों को लूट सकते हैं।
मनीष सिसोदिया ने कहा कि भाजपा की नई सरकार आते ही प्राइवेट स्कूलों ने मनमाने तरीके से फीस बढ़ाई। अभिभावकों ने खूब हंगामा किया। अभिभावकों ने विरोध किया, सड़क पर उतरे, लाठियां खाईं। यहां तक कि कड़ाके की धूप में जाकर प्रदर्शन करते हुए अभिभावक बेहोश तक हुए। प्राइवेट स्कूल वालों ने बाउंसर बुलाए। जिनके अभिभावक बढ़ी हुई फीस का विरोध कर रहे थे, उन मासूम बच्चों को कमरों में बंद कर दिया। लेकिन भाजपा के कानों पर जूं नहीं रेंगी। उन्होंने कहा कि भाजपा ने दिखावे के लिए नौटंकी की कि प्राइवेट स्कूलों की फीस को नियंत्रित करने के लिए हम एक कानून ला रहे हैं। लेकिन इस कानून का एक भी क्लॉज किसी प्राइवेट स्कूल के अधिकार कम नहीं करता। यह अभिभावकों के अधिकार कम करती है, सरकार के अधिकार कम करती है, यहां तक कि कोर्ट के अधिकार भी कम करती है। लेकिन प्राइवेट स्कूलों को खूब सशक्त करती है।
मनीष सिसोदिया ने बताया कि यह कानून कहता है कि दिल्ली में कोई भी प्राइवेट स्कूल अगर अपनी फीस बढ़ाना चाहता है, तो वह हर साल अपनी फीस बढ़ाने का प्रस्ताव अपनी ही बनाई हुई एक कमेटी को देगा। प्राइवेट स्कूलों की फीस को नियंत्रित करने का काम, यानी फीस बढ़ा पाएंगे या नहीं, उसको मंजूरी देने का काम स्कूल की बनाई हुई एक कमेटी करेगी। इस कमेटी का चेयरमैन स्कूल का मैनेजर होगा। इस कमेटी में मेंबर प्रिंसिपल और तीन या चार टीचर्स होंगे। इस तरह से पांच-छह लोग तो स्कूल के मैनेजमेंट के हो गए। इसके अलावा पांच ऐसे अभिभावक, जिन्हें स्कूल का मैनेजमेंट चुनेगा। कुल मिलाकर स्कूल की अपनी एक आंतरिक कमेटी बनेगी, जिसमें मैनेजर, प्रिंसिपल, टीचर्स और कुछ चुनिंदे अभिभावक होंगे, जिन्हें मैनेजमेंट की मेहरबानी पर कमेटी में शामिल किया जाएगा। यह कमेटी मिलकर तय करेगी कि स्कूल की फीस कितनी बढ़ेगी। जितनी मर्जी फीस बढ़ा लो।
मनीष सिसोदिया ने कहा कि इसके बाद जब यह कमेटी फीस बढ़ाने की इजाजत दे देगी, तो अगर किसी अभिभावक को लगता है कि मेरे बच्चे के स्कूल में नाजायज फीस बढ़ा दी गई है, स्कूल ने मनमाने तरीके से फीस बढ़ा दी है, उल्टा-सीधा लूटने का काम शुरू कर दिया है, तो उसके पास एक ही रास्ता है। वह अकेले ना सरकार के पास शिकायत कर सकता है, ना कोर्ट जा सकता है। वह केवल और केवल इस कमेटी के पास जाएगा। और कमेटी के पास भी अकेले नहीं जा सकता। उसे अपने बच्चे के स्कूल के कम से कम 15 फीसद अभिभावकों के हस्ताक्षर कराने पड़ेंगे। फिर वह शिकायत लेकर जा सकता है। मतलब, अभिभावकों के शिकायत करने के अधिकार को लगभग छीन लिया गया है।
मनीष सिसोदिया ने कहा कि जब अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री थे, इस कानून से पहले दिल्ली में व्यवस्था थी कि किसी भी स्कूल को अगर फीस बढ़ानी है, तो उसे सरकार के पास आना पड़ता था कि मेरे खर्चे ज्यादा बढ़ गए हैं, मैं फीस बढ़ाना चाहता हूं। दिल्ली सरकार सीएजी के ऑडिटर से (चार्टर्ड अकाउंटेंट से) स्कूल की आमदनी और खर्चे का ऑडिट कराती थी। फिर तय करती थी कि स्कूल को फीस बढ़ाने की अनुमति दी जाएगी या नहीं। सरकार की पूरी जवाबदेही थी। एक भी अभिभावक अगर अरविंद केजरीवाल के पास शिकायत लेकर आता था, उस स्कूल का ऑडिट हो जाता था और प्राइवेट स्कूलों को फीस नहीं बढ़ाने दी जाती थी।