दादरा और नगर हवेली मुक्ति दिवस : गौरवशाली इतिहास की गाथा

दादरा और नगर हवेली मुक्ति दिवस : गौरवशाली इतिहास की गाथा

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नई दिल्ली, 1 अगस्त (आईएएनएस)। हर साल 2 अगस्त को दादरा और नगर हवेली में मुक्ति दिवस बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। यह दिन न केवल इस क्षेत्र की पुर्तगाली शासन से आजादी की याद दिलाता है, बल्कि उन वीर स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान और साहस को भी श्रद्धांजलि देता है, जिन्होंने 1954 में इस क्षेत्र को भारतीय गणराज्य का हिस्सा बनाया।

आज यह केंद्र शासित प्रदेश दादरा और नगर हवेली एवं रूप में जाना जाता है, जो अपने समृद्ध इतिहास और सांस्कृतिक विविधता के लिए पहचाना जाता है।

दादरा और नगर हवेली का इतिहास 18वीं सदी में मराठों के शासन से शुरू होता है। 1779 में, मराठा-पेशवा ने पुर्तगालियों के साथ मित्रता संधि के तहत नगर हवेली के 72 गांवों का राजस्व उन्हें सौंप दिया। 1785 में पुर्तगालियों ने दादरा को भी अपने कब्जे में ले लिया। लगभग 170 वर्षों तक पुर्तगाली शासन में इस क्षेत्र ने भ्रष्टाचार, आदिवासी समुदायों के शोषण और उपेक्षा का सामना किया।

भारत को 1947 में आजादी मिलने के बाद भी पुर्तगालियों ने गोवा, दमन, दीव और दादरा-नगर हवेली जैसे क्षेत्रों को छोड़ने से इनकार कर दिया। 1954 में यहां स्वतंत्रता संग्राम ने जोर पकड़ा। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, आजाद गोमांतक दल और नेशनल लिबरेशन मूवमेंट जैसे संगठनों ने इस मुक्ति आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

31 जुलाई, 1954 को मूसलाधार बारिश के बीच स्वयंसेवकों का एक जत्था सिलवासा की ओर बढ़ा। 2 अगस्त, 1954 को सिलवासा में पुर्तगाली सैनिकों को आत्मसमर्पण करने पर मजबूर कर दिया गया।

बुजुर्ग नेता सेनहर लुइस डी गामा ने तिरंगा फहराया और भारतीय राष्ट्रगान गाकर इस क्षेत्र को भारतीय गणराज्य का हिस्सा घोषित किया। 1954 से 1961 तक यह क्षेत्र 'स्वतंत्र दादरा और नगर हवेली प्रशासन' के तहत संचालित हुआ और 11 अगस्त, 1961 को इसे औपचारिक रूप से भारतीय संघ में शामिल किया गया।

मुक्ति दिवस के अवसर पर सिलवासा में विभिन्न सांस्कृतिक और सामाजिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। स्थानीय आदिवासी समुदाय अपने पारंपरिक नृत्यों और त्योहारों जैसे 'दिवसो' और 'भावड़ा' के साथ उत्सव में शामिल होते हैं।

यह दिन उन शहीदों को याद करने का अवसर है, जिन्होंने आजादी के लिए अपने प्राण न्योछावर किए। यह केंद्र शासित प्रदेश अपनी प्राकृतिक सुंदरता, हरे-भरे जंगलों और दमनगंगा नदी के लिए भी प्रसिद्ध है। मुक्ति दिवस न केवल ऐतिहासिक जीत का उत्सव है, बल्कि एकता, साहस और स्वतंत्रता की भावना का प्रतीक भी है।

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