कांग्रेस ने हरियाणा में लॉ ऑफिसर्स की नियुक्तियों पर उठाए सवाल 

कांग्रेस ने हरियाणा में लॉ ऑफिसर्स की नियुक्तियों पर उठाए सवाल 

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  • कहा- भाजपा सरकार महिला अपराधों के आरोपियों को संरक्षण दे रही और न्याय प्रणाली में सिफारिशी नियुक्तियां कर रही
  • भाजपा सांसद के बेटे विकास बराला और उन्हें जमानत देने वालीं जस्टिस गिल की बहन की नियुक्ति रद्द की जाए   

 

नई दिल्ली, 25 जुलाई (हि.ला.)। कांग्रेस ने हरियाणा में हाल ही में की गई विवादित लॉ ऑफिसर्स की नियुक्तियों पर सवाल उठाते हुए कहा कि भाजपा सरकार महिला अपराधों के आरोपियों को संरक्षण दे रही है और न्याय प्रणाली में सिफारिशी नियुक्तियां कर रही है।

नई दिल्ली स्थित कांग्रेस कार्यालय में पत्रकार वार्ता करते हुए कांग्रेस नेता एडवोकेट महिमा सिंह ने बताया कि विकास बराला को असिस्टेंट एडवोकेट जनरल के तौर पर नियुक्त किया गया है, जो भाजपा राज्यसभा सांसद सुभाष बराला का बेटा है। उन्होंने याद दिलाया कि इसी विकास बराला को अगस्त, 2017 में एक रात को नशे की हालत में गिरफ्तार किया गया था, जब उसने एक आईएएस अधिकारी की बेटी का पीछा किया और उसका उत्पीड़न किया था।

महिमा सिंह ने कहा कि उस समय पुलिस ने बराला को गिरफ्तार तो किया, लेकिन बाद में दबाव के चलते उसे रिहा करना पड़ा। यदि पीड़िता एक आम लड़की होती, तो उसकी स्थिति भी कठुआ, उन्नाव या हाथरस पीड़िताओं जैसी हो सकती थी। चूंकि पीड़िता आईएएस अधिकारी की बेटी थी, इसलिए मामला आसानी से रफा-दफा नहीं हो सका और आख़िरकार तमाम धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज कराने में सफलता मिली।

कांग्रेस नेता ने बताया कि इस साल जनवरी-फरवरी 2025 के बीच हरियाणा के एडवोकेट जनरल द्वारा 100 लॉ ऑफिसर के रिक्त पदों के लिए विज्ञापन जारी किया गया, जिसके लिए तीन हजार आवेदन आए। जब 95 चयनित उम्मीदवारों की सूची सामने आई, तो यह देखकर आश्चर्य हुआ कि इसमें ज्यादातर लोग भाजपा से जुड़े नेताओं के बेटे-बेटी या जजों के रिश्तेदार थे।

महिमा सिंह ने कहा कि इस सूची में विकास बराला के साथ-साथ अनु पाल नाम की महिला का नाम भी शामिल है। उन्होंने खुलासा किया कि अनु पाल कोई और नहीं, बल्कि विकास बराला को जमानत देने वालीं जस्टिस लिसा गिल की छोटी बहन हैं।

लॉ ऑफिसर्स नियुक्तियों को अनैतिक और गलत बताते हुए कांग्रेस नेता ने कहा कि एजी की नियुक्ति के लिए मापदंड स्पष्ट हैं, एडवोकेट्स एक्ट की धारा 24 (a) व धारा 35 के अनुसार यदि कोई अभियुक्त हो तो उसकी नियुक्ति नहीं की जा सकती और वकालत करने की अनुमति भी नहीं दी जा सकती। 

उन्होंने हरियाणा के एडवोकेट जनरल प्रविंद सिंह चौहान और भाजपा सरकार से पूछा कि काबिल वकीलों को छोड़कर किस आधार पर विकास बराला एवं अनु पाल का चयन किया गया? किस आधार पर अन्य उम्मीदवारों को रिजेक्ट किया गया? 

विकास बराला और अनु पाल की नियुक्ति को तत्काल प्रभाव से रद्द किए जाने की मांग करते हुए महिमा सिंह ने कहा कि चयन प्रक्रिया के उन बिंदुओं को सार्वजनिक किया जाए, जिनके आधार पर हजारों वकीलों को रिजेक्ट किया गया और विकास बराला जैसे लोगों को जगह दी गई। इसके साथ ही एडवोकेट जनरल यह बताएं कि आने वाले समय में हरियाणा की बेटी को न्याय दिलाने के लिए वह क्या कदम उठाने वाले हैं।

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