(आलेख) अमेरिका के 25 प्रतिशत टैरिफ का उत्तर: आत्मनिर्भर भारत का वैश्विक उत्तरगान

(आलेख) अमेरिका के 25 प्रतिशत टैरिफ का उत्तर: आत्मनिर्भर भारत का वैश्विक उत्तरगान

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श्याम जाजू

30 जुलाई 2025 को अमेरिका के राष्ट्राध्यक्ष डोनाल्ड ट्रम्प ने एक चौंकाने वाली घोषणा करते हुए भारत से आने वाले लगभग सभी आयातों पर 25% टैरिफ (आयात शुल्क) लगाने की बात कही। इस टैरिफ के दायरे में भारत की सबसे महत्वपूर्ण निर्यात वस्तुएँ जैसे कि दवाएं (विशेषकर जेनेरिक दवाएं), वस्त्र, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, ऑटो पार्ट्स, फार्मास्यूटिकल API, और औद्योगिक मशीनरी शामिल हैं। इसके अलावा, ट्रम्प प्रशासन ने यह भी संकेत दिया है कि अगर भारत रूस से तेल और हथियारों की खरीदारी जारी रखता है, तो उस पर अतिरिक्त दंडात्मक शुल्क (penalty tariff) लगाया जाएगा। यह नीति सिर्फ आर्थिक दृष्टिकोण से ही नहीं, बल्कि भू-राजनीतिक, कूटनीतिक और रणनीतिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। भारत और अमेरिका के संबंध पिछले दो दशकों में गहरे हुए हैं । चाहे वह रक्षा समझौते हों, तकनीकी सहयोग हो या क्वाड जैसे बहुपक्षीय मंच। ऐसे में ट्रम्प की यह नीति अचानक एक अप्रत्याशित मोड़ का संकेत देती है, जो केवल व्यापारिक संबंधों को नहीं, बल्कि संपूर्ण वैश्विक संतुलन को प्रभावित कर सकती है।

 

ट्रम्प की चुनावी रणनीति और 'अमेरिका फर्स्ट' की वापसी

डोनाल्ड ट्रम्प ने 2025 के चुनावी मौसम में फिर से अपनी प्रसिद्ध लेकिन विवादास्पद "America First" नीति को केंद्र में रखा है। उनका दावा है कि विदेशी उत्पादों पर ऊँचा कर लगाने से अमेरिकी कंपनियों को संरक्षण मिलेगा, देश में नौकरियाँ लौटेंगी, और घरेलू उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा। भारत जैसे देशों से सस्ते आयात ट्रम्प के अनुसार अमेरिका की मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री को नुकसान पहुँचा रहे हैं। अपने चुनावी वादों में ट्रम्प ने एक और बार अंतरराष्ट्रीय व्यापार समझौतों की समीक्षा, चीन और भारत जैसे देशों पर सख्ती, और अमेरिका के भीतर पुनः औद्योगीकरण (Reindustrialization) की बात की है। ट्रम्प ने यह भी कहा है कि "अमेरिका अब कोई फ्री लंच नहीं देगा", और प्रत्येक सहयोगी देश को 'Cost-Benefit' आधार पर देखा जाएगा। यही वजह है कि भारत जैसे सहयोगी देश, जिन्होंने रूस से ऊर्जा और रक्षा उपकरणों की खरीद को बनाए रखा है, अब ट्रम्प के रडार पर हैं।

 

अंतरराष्ट्रीय संदर्भ और भू-राजनीतिक संदेश

यह निर्णय केवल भारत के लिए ही नहीं, बल्कि अमेरिका के अन्य साझेदारों के लिए भी एक कड़ा संकेत है। ट्रम्प दरअसल एक व्यापक भू-राजनीतिक संदेश देना चाह रहे हैं कि यदि कोई देश अमेरिका की रणनीतिक प्राथमिकताओं के विपरीत जाता है। जैसे रूस के साथ व्यापार, तो उसे आर्थिक रूप से दंडित किया जा सकता है। यह नीति अमेरिका के पारंपरिक नेतृत्व वाले उदार अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था (liberal world order) से एक निर्णायक विचलन दर्शाती है। ट्रम्प का यह कदम ऐसे समय पर आया है जब यूक्रेन युद्ध, चीन-ताइवान तनाव, और वैश्विक आर्थिक मंदी जैसी चुनौतियाँ विश्व भर में अनिश्चितता फैला रही हैं। ऐसे में ट्रम्प द्वारा भारत पर टैरिफ और दंडात्मक कर लगाने का निर्णय एकतरफा नहीं माना जा सकता; यह अमेरिका के भू-राजनीतिक पुनःसंरेखन (realignment) की ओर भी संकेत करता है।

 

नोबेल पुरस्कार का आकर्षण और युद्ध-निरोधक छवि

दिलचस्प बात यह है कि ट्रम्प इस बार स्वयं को "शांति दूत" (Peace Broker) के रूप में भी प्रस्तुत कर रहे हैं। वे दावा कर चुके हैं कि अगर वे सत्ता में लौटते हैं, तो वे रूस-यूक्रेन युद्ध को 24 घंटे में रोक देंगे, इस का क्या हुआ आपको ज्ञात है हि…… अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प के "भारत-पाक सुलह" दावे पर भारत ने संसद में साफ शब्दों में खंडन किया। यह सिर्फ अस्वीकार नहीं, भारत की संप्रभुता और कूटनीतिक सिद्धांतों की अडिगता का ऐलान था, महाशक्ति कोई भी हो, भारत अपने रुख से नहीं डिगेगा। इसी प्रकार, उन्होंने चीन और ताइवान के बीच तनाव कम करने की दिशा में हस्तक्षेप का इशारा भी दिया है। यह सब नोबेल शांति पुरस्कार पाने की आकांक्षा से भी जुड़ा हुआ है, जिसका ट्रम्प ने कई बार सार्वजनिक रूप से उल्लेख किया है। इस पृष्ठभूमि में, ट्रम्प द्वारा भारत जैसे देश पर कर लगाने का निर्णय और रूस के साथ व्यापार को दंडित करना, उनकी उस छवि को भी मजबूत करने का प्रयास है।  उनकी रणनीति स्पष्ट है, घरेलू जनमत को अमेरिका के आर्थिक हितों के नाम पर एकजुट करना और अंतरराष्ट्रीय मंच पर एक निर्णायक, अप्रत्याशित नेता के रूप में अपनी वापसी करना।

 

अमेरिका का अस्वस्थ जनमत और विदेशी नीति का राजनीतिकरण

अमेरिका इस समय आंतरिक रूप से सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक चुनौतियों से जूझ रहा है। उच्च महंगाई, बेरोजगारी, ओपिओइड महामारी, और राजनीतिक ध्रुवीकरण जैसे मुद्दों के कारण आम अमेरिकी नागरिक का सरकार और वैश्वीकरण पर से विश्वास कम हो रहा है। ऐसे में ट्रम्प जैसे नेता 'बाहरी दुश्मन' (external scapegoat) का सहारा लेकर जनमत को अपनी ओर खींचना चाहते हैं और भारत, चीन जैसे देश उस रणनीति का हिस्सा बन जाते हैं। भारत जैसे लोकतांत्रिक देश, जो तकनीकी, औद्योगिक और रक्षा के क्षेत्रों में अमेरिका के रणनीतिक सहयोगी रहे हैं, उन्हें ट्रम्प द्वारा केवल व्यापार घाटे की दृष्टि से देखना, यह दर्शाता है कि अमेरिका की विदेश नीति अब नीतिगत स्थिरता के बजाय आंतरिक राजनीति से प्रेरित हो रही है। यह एक खतरनाक प्रवृत्ति है, जो वैश्विक दक्षिण (Global South) के देशों के लिए आने वाले वर्षों में बड़ी चुनौती बन सकती है।

 

इतिहास का पुनरावर्तन — क्या यह 1998 के जैसे प्रतिबंधों का युग लौट आया है?

1998 में भारत ने पोखरण-II परमाणु परीक्षण किए, इस घटना भारत के परमाणु परीक्षणों के बाद अमेरिका द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों से की जा सकती है। यह भारत की रणनीतिक स्वतंत्रता की घोषणा थी, लेकिन पश्चिमी देशों, विशेषकर अमेरिका, ने इसे अपनी वैश्विक नीति के खिलाफ माना और भारत पर कठोर आर्थिक, रक्षा और तकनीकी प्रतिबंध लगा दिए। भारत पर सैन्य सहयोग, स्पेस टेक्नोलॉजी, उच्च तकनीकी उपकरणों, और विदेशी सहायता तक की रोक लगा दी गई। उस समय भी अमेरिका ने भारत पर एकतरफा आर्थिक और सैन्य प्रतिबंध लगाए थे, लेकिन परिणाम यह हुआ कि भारत ने आत्मनिर्भरता की ओर एक बड़ा कदम बढ़ाया। आईटी क्रांति, रक्षा अनुसंधान में नवाचार, और रणनीतिक स्वावलंबन की नींव उन्हीं वर्षों में रखी गई थी। ट्रम्प द्वारा घोषित यह नया टैरिफ और पेनल्टी कर, एक नया '1998 क्षण' साबित हो सकता है। एक ऐसा क्षण जहाँ भारत को फिर से अपने आर्थिक, तकनीकी और रणनीतिक मार्ग को स्वतंत्रता के साथ तय करना होगा।

 

संकट में आत्मनिर्भरता का जन्म : अमेरिका द्वारा सुपर कंप्यूटर Cray XMP देने से मना किए जाने पर भारत ने खुद का सुपर कंप्यूटर विकसित करने की योजना बनाई। इसी से जन्म हुआ C-DAC (Centre for Development of Advanced Computing) द्वारा विकसित पहला स्वदेशी सुपर कंप्यूटर PARAM 8000  और 1 GFLOPS (Gigaflops) की गति पाने वाला एशिया का पहला सुपरकंप्यूटर बना। यह न केवल टेक्नोलॉजी में आत्मनिर्भरता की शुरुआत थी, बल्कि जनमानस में यह विश्वास भी पैदा हुआ कि “भारत कर सकता है”।

 

रक्षा और विज्ञान में स्वावलंबन: प्रतिबंधों के कारण भारत ने:

  • DRDO को सशक्त किया, जिससे तेजस लड़ाकू विमान, ब्रह्मोस मिसाइल और अर्जुन टैंक जैसी परियोजनाएँ तेजी से आगे बढ़ीं।
  • ISRO ने PSLV जैसे प्रक्षेपण यानों में आत्मनिर्भरता प्राप्त की और चंद्रयान जैसे मिशन की नींव रखी।
  • HAL, BEL जैसी संस्थाओं ने घरेलू रक्षा उत्पादन को गति दी।

फार्मा और आईटी क्रांति का प्रारंभ : पश्चिमी दवा कंपनियों द्वारा सप्लाई रोकने की आशंका के कारण भारत ने जेनरिक दवा निर्माण में निवेश बढ़ाया। परिणामस्वरूप, आज भारत दुनिया का फार्मेसी हब है — विश्व की 60% वैक्सीन भारत में बनती है। इसी समय भारत की सॉफ्टवेयर निर्यात क्षमताएँ तेज़ी से बढ़ीं। Infosys, Wipro, TCS जैसी कंपनियों ने वैश्विक बाजार में पैर जमाए। अमेरिका द्वारा तकनीकी प्रतिबंध लगाए जाने के बावजूद भारतीय कंपनियाँ सिलिकॉन वैली की रीढ़ बन गईं।

जन-मानस में आत्मबल: 1998 के प्रतिबंधों ने भारतीय जनमानस में “विकल्प खोजने और अपनाने” की मानसिकता को जन्म दिया। कॉलेजों में रिसर्च को बढ़ावा मिला, IIT और IISc जैसे संस्थान नवाचार के केंद्र बने। लोगों ने यह महसूस किया कि “कृपा पर नहीं, क्षमता पर भरोसा” ज़रूरी है। 2025 ME क्या वही स्थिति फिर दोहराई जा सकती है? अब जब ट्रम्प प्रशासन भारत पर 25% टैरिफ और रूसी व्यापार के लिए दंडात्मक कर लगाने की बात कर रहा है, यह 1998 जैसे “Economic Isolationकी गूँज देता है। फर्क बस इतना है कि आज भारत कहीं ज़्यादा सशक्त, समर्थ और आत्मनिर्भर है।

एक तुलनात्मक दृष्टिकोण

इतिहास का पुनरावर्तन — 1998 बनाम 2025:

पहलू

1998

2025

कारण

पोखरण परमाणु परीक्षण

अमेरिका द्वारा भारत-रूस व्यापार, ग्लोबल साउथ उभार और रणनीतिक स्वतंत्रता से उत्पन्न असंतुलन

अमेरिकी प्रतिक्रिया

सैन्य और आर्थिक प्रतिबंध; तकनीकी व रक्षा सहयोग बंद

25% आयात टैरिफ + दंडात्मक कर; व्यापार घाटा का हवाला

भारत की आर्थिक स्थिति

$420 बिलियन GDP; सीमित विदेशी निवेश; अनुसंधान प्रारंभिक अवस्था में

$4.19 ट्रिलियन GDP; जापान को पछाड़कर विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था; आत्मनिर्भर भारत का अभियान प्रगति पर

वैश्विक गठबंधन

सीमित; Non-Aligned Movement तक सीमित

BRICS+, Global South, I2U2, QUAD, SCO, Indo-Pacific नेटवर्क

प्रतिक्रिया

DRDO, ISRO, HAL जैसी संस्थाओं का विकास; घरेलू उद्योगों को प्रोत्साहन

DPI, ONDC, RuPay, UPI जैसे प्लेटफॉर्म; FTA विकल्पों की खोज; निर्यात में विविधीकरण; MSME समर्थन

निर्यात प्रभाव

दवा, सूती वस्त्र, चाय और कृषि उत्पादों पर निर्भरता

इंजीनियरिंग गुड्स, फार्मास्यूटिकल्स, जेम्स और ज्वेलरी, IT सेवाएँ, इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटोमोबाइल्स

जनता व निजी क्षेत्र की भूमिका

सरकार-प्रेरित प्रयास; निजी निवेश सीमित

नीति + नवाचार; कई निजी उद्योग और Startups आत्मनिर्भरता में भागीदार

तकनीकी व वैज्ञानिक प्रतिक्रिया

वैज्ञानिक स्वदेशीकरण की नींव रखी गई

सेमीकंडक्टर मिशन, डिजिटल इंडिया, क्वांटम और AI में भारत की स्वतंत्र रणनीति विकसित

परिणाम

2000 के दशक में IT और अंतरिक्ष क्षेत्र का उदय; विदेश नीति में संतुलन

आत्मनिर्भरता के अगले चरण में प्रवेश; भारत वैश्विक वैकल्पिक आपूर्ति केंद्र के रूप में उभरने की स्थिति में

लंबी अवधि की दिशा

सुरक्षा-आधारित तकनीकी विकास

आर्थिक-तकनीकी संप्रभुता, ज्ञान निर्यात” आधारित नेतृत्व, वैश्विक साझेदारी में पुनर्संरचना

 

मुख्य आर्थिक क्षेत्रों में संभावनाएँ और भारत की रणनीति

25% टैरिफ एक गंभीर आर्थिक चुनौती के रूप में सामने आया है। यदि यह प्रस्ताव लागू होता है, तो भारत के निर्यात उद्योगों, विशेषकर टेक्सटाइल, आईटी हार्डवेयर, फार्मास्यूटिकल्स और ऑटो पार्ट्स जैसे क्षेत्रों पर सीधा असर पड़ेगा। लेकिन इस संकट के भीतर छिपा है एक अभूतपूर्व अवसर जो आत्मनिर्भर भारत, टेक्नोलॉजी में लीडरशिप, और वैश्विक व्यापार में नई रणनीतियों को अंकित कर सकता है। प्रतिबंध हमें तोड़ते नहीं हैं, वे एक नई दिशा देने का कार्य करते हैं। ट्रम्प का टैरिफ भी ऐसा ही एक मोड़ साबित हो सकता है।

भारत विश्व का तीसरा सबसे बड़ा दवा उत्पादक देश है। अमेरिकी बाज़ार में जेनेरिक दवाओं की भारी मांग है और भारत इसकी आपूर्ति में अग्रणी है। ट्रम्प के टैरिफ से इन दवाओं की लागत अमेरिका में बढ़ सकती है, लेकिन यह एक अवसर भी है। भारत का नाम ग्लोबल हेल्थ गारंटी” के रूप में स्थापित हो। भारत की वैक्सीन डिप्लोमेसी से COVID-19 काल में भारत ने 150+ देशों को वैक्सीन पहुँचाई। अब यही मॉडल डिजिटल हेल्थ, मेडिकल उपकरण और AI-डायग्नोस्टिक्स के लिए दोहराया जा सकता है।

चीन पर निर्भरता घटाने के वैश्विक ट्रेंड के बीच भारत को trusted manufacturing hub बनने का मौका मिला है। 25% टैरिफ के कारण टेक्नोलॉजी डिप्लोमेसी से इलेक्ट्रॉनिक पार्ट्स में आगे बढे इस विषय में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दूरदर्शी नेतृत्ववाली सरकार काम कर ही रही है।  सेमीकंडक्टर मिशन को और डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर (DPI) जैसे आधार, BHIM, CoWIN की तर्ज पर "Hard DPI" , यानी सेमीकंडक्टर, IoT सेंसर, इलेक्ट्रॉनिक घटकों का निर्माण में भारत हो या भारत को ATMP (Assembly Testing Marking and Packaging) इकाइयों के लिए विशेष क्षेत्र बनना हो

दुनिया के सबसे ताक़तवर देश को अब Made in India iPhones चाहिए

ट्रंप की 25% टैरिफ धमकी के बावजूद, Apple ने भारत पर भरोसा जताया और भारत ने उसे साबित भी कर दिखाया। मार्च से मई 2025 के बीच भारत से भेजे गए iPhones में से 97% अमेरिका पहुंचे, जिनकी कीमत ₹27,000 करोड़ थी। अकेले मई में ही ₹8,600 करोड़ के iPhones अमेरिका भेजे गए। जनवरी से मई तक का कुल निर्यात ₹37,000 करोड़ के पार पहुंचा, 2024 से कहीं ज़्यादा। जहाँ एक समय अमेरिका के आधे iPhones भारत में बनते थे, अब लगभग पूरे अमेरिकी बाज़ार के लिए निर्माण यहीं हो रहा है यह सिर्फ व्यापार नहीं, यह भारत की ताकत, भरोसे, और तकनीकी नेतृत्व का ऐलान है। आज भारत सिर्फ बनाता नहीं, बल्कि वैश्विक तकनीक का भविष्य गढ़ रहा है, अपने शौर्य, कौशल और संकल्प से।

"आत्मनिर्भर भारत" से "वैश्विक रक्षा शक्ति" की ओर

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह स्पष्ट दृष्टिकोण है कि भारत अब केवल विश्व का सबसे बड़ा रक्षा आयातक नहीं, बल्कि एक सशक्त और भरोसेमंद रक्षा निर्यातक के रूप में उभरे। यह केवल रणनीति नहीं, बल्कि भारत की वैश्विक भूमिका के पुनर्परिभाषण की यात्रा है। हाल के वर्षों में जब भारत और रूस के बीच रणनीतिक संबंधों में गहराई आई, अमेरिका की ओर से भारत पर दबाव की राजनीति भी देखने को मिली। किंतु भारत ने उसका उत्तर नीति और नवाचार से दिया। हथियारों की निर्भरता से निकलकर, अपनी ही धरती पर शक्ति निर्माण की राह अपनाई। ‘मेक इन इंडिया – डिफेंस संस्करण’ के तहत एक ऐसी औद्योगिक क्रांति आरंभ हुई, जिसने DRDO, HAL, BEL जैसे सार्वजनिक उपक्रमों को और Tata Aerospace, L&T Defence, Kalyani Group जैसी निजी कंपनियों को एक साझा विज़न में जोड़ा।

आज भारत स्मार्ट हथियारों, ड्रोन्स, मिसाइल प्रणालियों और इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर तकनीक में आत्मनिर्भर ही नहीं, बल्कि वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धी भी बन गया है। यह बदलाव अचानक नहीं आया। यह दशकों की आयात-निर्भरता को नीति, अनुसंधान और संकल्प से तोड़ने का परिणाम है। जहाँ 2013–14 में भारत का रक्षा निर्यात मात्र ₹1,940 करोड़ था, वहीं 2024–25 में यह आंकड़ा ₹23,622 करोड़ तक पहुंच गया है। 2023–24 में अकेले ₹21,083 करोड़ के निर्यात ने यह सिद्ध कर दिया कि भारत अब दूसरों पर निर्भर नहीं, दूसरों की ज़रूरतों का समाधान बन चुका है।

मोदी कहते हैं, "भारत अब न केवल अपनी सीमाओं की रक्षा करेगा, बल्कि दुनिया को भी सुरक्षित बनाने में भागीदार बनेगा वो भी भारतीय तकनीक, परंपरा और विश्वास के साथ।" उनका सपना है कि भारत की पहचान सिर्फ़ उसकी सैन्य ताकत से नहीं, बल्कि उसके दृढ़ संकल्प, नवाचार और विश्वसनीय रक्षा उत्पादों से हो। "विकसित भारत" की यह यात्रा अब केवल विचार नहीं, एक ठोस कार्ययोजना और स्पष्ट उपलब्धियों में बदल चुकी है। भारत अगला का लक्ष्य है, 2029 तक ₹50,000 करोड़ के रक्षा निर्यात का। यह महज़ एक आर्थिक आंकड़ा नहीं, बल्कि नए भारत की वैश्विक साख, आत्मबल और तकनीकी नेतृत्व का प्रतीक है। यह उस दिशा की पुष्टि है जहाँ भारत अपने लिए नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए निर्माण करता है,सुरक्षित, सक्षम और आत्मनिर्भर भविष्य के लिए।

टैरिफ संकट” नहीं, यह “रणनीतिक पुनर्गठन का काल” है

ट्रम्प की 25% टैरिफ नीति भारत को एक निर्णायक मोड़ पर ला खड़ा करती है। जहाँ एक ओर दबाव है, वहीं दूसरी ओर अवसर का द्वार भी खुलता है। भारत का इतिहास गवाह है कि हर बाहरी दबाव ने हमें भीतर से और मजबूत किया है। 1998 के परमाणु प्रतिबंधों की तरह, आज यह टैरिफ नीति भी भारत को डिजिटल, आर्थिक और सामरिक शक्ति के रूप में उभरने का अवसर दे रही है। MSME और हस्तशिल्प क्षेत्र, जो ग्रामीण भारत की आत्मा हैं, पर इसका तत्काल प्रभाव पड़ेगा। वस्त्र, कालीन, चमड़ा, कांच और हस्तशिल्प जैसे उत्पादों के पीछे करोड़ों कारीगरों की आजीविका जुड़ी है। लेकिन संकट के इस क्षण में ब्रांडिंग, मूल्यवर्धन और विविधीकरण के रास्ते भारत को मजबूत बना सकते हैं। डिजिटल भारत के लिए यह काल स्वर्णिम बन सकता है। जहाँ AI, Cybersecurity, HealthTech, Data Analytics और योग जैसे क्षेत्रों में भारत Global Digital Gurukul के रूप में उभर सकता है।Skilled Migration Ecosystem के माध्यम से हम न केवल ज्ञान निर्यात कर सकते हैं, बल्कि विश्वगुरु के साख की पुनर्स्थापना कर सकते हैं।

भारत को चाहिए कि वह अब एक Post-Tariff Era Strategy तहत नए बाजारों की खोज, वैकल्पिक निर्यात हब जो  यूरोप, अफ्रीका, लैटिन अमेरिका में मेड-इन-इंडिया को स्थापित करवाने की संभावना बन सकता है। Strategic Tech Alliances के तहत  जापान, फ्रांस, UAE, इज़राइल जैसे भागीदारों के साथ गहराई से जुड़ना होगा । यह समय घबराने का नहीं, दृष्टिकोण बदलने का है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत इस टैरिफ संकट को सामरिक पुनर्जागरण में बदलने की क्षमता रखता है और यह परिवर्तन सिर्फ आर्थिक नहीं, राष्ट्रनिर्माण का युगांतकारी अध्याय बन सकता है।

 

(लेखक भारतीय जनता पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं)

 

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