'सार्वजनिक सेहत से कोई समझौता नहीं', कबूतरखानों को लेकर बॉम्बे हाईकोर्ट सख्त

'सार्वजनिक सेहत से कोई समझौता नहीं', कबूतरखानों को लेकर बॉम्बे हाईकोर्ट सख्त

Share this post:

 

मुंबई, 7 अगस्त (आईएएनएस)। बॉम्बे हाईकोर्ट ने कबूतरखानों को बंद करने के फैसले पर सख्त रुख अपनाते हुए कहा है कि सार्वजनिक स्वास्थ्य के साथ कोई समझौता नहीं किया जाएगा। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह फैसला डॉक्टरों और विशेषज्ञों की रिपोर्ट के आधार पर लिया गया है, न कि मनमाने ढंग से।

हाईकोर्ट ने कहा, "यह मामला किसी एक व्यक्ति या मोहल्ले का नहीं, बल्कि पूरे समाज की सेहत से जुड़ा है।"

कोर्ट ने राज्य सरकार से कहा कि अगर उनकी कोई अलग राय है, तो वे इसे पेश करें, लेकिन अगर सरकार को जनता की सेहत की चिंता नहीं है, तो यह उनकी मर्जी है।

हाईकोर्ट ने जोर देकर कहा कि जनता के स्वास्थ्य की रक्षा करना उसका कर्तव्य है। कबूतरों की बीट (विष्ठा) से गंभीर बीमारियां फैल रही हैं, जो मेडिकल रिपोर्ट्स में दर्ज है। कुछ मामलों में मरीजों की हालत इतनी खराब हो जाती है कि फेफड़े तक बदलने की नौबत आ जाती है। खासकर छोटे बच्चे और बुजुर्ग इससे सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं। कुछ लोगों के कबूतरों को दाना डालने के शौक के कारण पूरे इलाके की सेहत को खतरे में नहीं डाला जा सकता।

दरअसल, बॉम्बे हाईकोर्ट ने बीएमसी को शहर के सभी अस्पतालों से डेटा पेश करने का निर्देश दिया था, लेकिन बीएमसी ने अब तक यह डेटा जमा नहीं किया।

कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि इस मामले में कोई नया आदेश नहीं दिया गया है, बल्कि बीएमसी के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान निर्देश जारी किए गए हैं।

सुनवाई के दौरान डॉ. राजन की रिपोर्ट भी कोर्ट में पेश की गई, जिसमें उन्होंने कबूतरों से होने वाली बीमारियों और स्वास्थ्य समस्याओं का जिक्र किया था। डॉ. राजन ने सुझाव दिया था कि कबूतरखाने बंद किए जाएं और उन्हें दाना डालना रोका जाए।

जस्टिस ओक ने इस मुद्दे को पहले भी गंभीरता से लिया था और कोर्ट ने कहा कि उनके पास इस संबंध में मेडिकल रिपोर्ट्स मौजूद हैं।

हाईकोर्ट ने दोहराया कि यह मामला सीधे तौर पर लोगों के स्वास्थ्य से जुड़ा है और हजारों लोग प्रभावित इलाकों में रहते हैं। कोर्ट ने कहा, "कुछ गिने-चुने लोगों का पक्षियों को दाना डालने का शौक पूरे समाज के स्वास्थ्य पर भारी नहीं पड़ सकता।"

हाईकोर्ट ने सख्त लहजे में कहा कि यह मामला राज्य सरकार और पालिका की जिम्मेदारी है। संविधान हर नागरिक को सुरक्षा देता है, न कि सिर्फ कुछ लोगों को। कोर्ट ने इस मुद्दे को सभी के अधिकारों से जोड़ते हुए कहा कि जनता की सेहत सर्वोपरि है।

स्पेशल रिपोर्ट

Stay Connected

Popular News